कोई मोनिस नहीं मेरा कोई ग़म-ख़्वार नहीं
क्या मैं इतनी सी मुरव्वत का भी हक़दार नहीं
मेरे ही दम से जिन्हें अज़्मत-ए-किरदार मिली
वही कहते हैं कि मैं साहब-ए-किरदार नहीं
एहतिमाम-ए-रसन-ओ-दार है अब किस के लिए
मैं ख़तावार नहीं आप ख़तावार नहीं
मुंसिफ़-ए-शहर को दे कौन सवालों के जवाब
अब किसी शख़्स में भी जुरअत-ए-गुफ़्तार नहीं
सिलसिला ऊँचे मकानों का है ता-हद्द-ए-नज़र
शहर में फिर भी कहीं साया-ए-दीवार नहीं
क़ाफ़िले वाले कहाँ पाएँगे मंज़िल का निशाँ
जज़्बा-ए-शौक़ नहीं गर्मी-ए-रफ़्तार नहीं
क्या फ़क़त दाद है शाइ'र की रियाज़त का सिला
'सोज़' क्या मश्क़-ए-सुख़न काविश-ए-बेकार नहीं
ग़ज़ल
कोई मोनिस नहीं मेरा कोई ग़म-ख़्वार नहीं
हीरानंद सोज़