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कोई मोहलिक सी बीमारी हुई है | शाही शायरी
koi mohlik si bimari hui hai

ग़ज़ल

कोई मोहलिक सी बीमारी हुई है

जुनैद अख़्तर

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कोई मोहलिक सी बीमारी हुई है
मोहब्बत आँख से जारी हुई है

तेरी रिक़्क़त की शिद्दत से है ज़ाहिर
ये मेरे नाम पर तारी हुई है

सज़ा है ये मआशी हिजरतों की
बहुत मसरूफ़ बेकारी हुई है

कभी क़िस्मत को बेचारी न कहना
कि ये तक़दीर की मारी हुई है

ज़बाँ चलती नहीं है इस तरह से
ये आरी काट से आरी हुई है

वो ऐसे ख़्वाब थे सोते हुए भी
मिरी फ़र्द-ए-अमल भारी हुई है

यक़ीं ख़ुद उठ गया है मुझ से मेरा
मिरी इतनी तरफ़-दारी हुई है

मुझे जब बोलना आया है 'अख़्तर'
तभी लफ़्ज़ों की दिलदारी हुई है