कोई मिलता नहीं ये बोझ उठाने के लिए
शाम बेचैन है सूरज को गिराने के लिए
अपने हम-ज़ाद दरख़्तों में खड़ा सोचता हूँ
मैं तो आया था इन्हें आग लगाने के लिए
मैं ने तो जिस्म की दीवार ही ढाई है फ़क़त
क़ब्र तक खोदते हैं लोग ख़ज़ाने के लिए
दो पलक बीच कभी राह न पाई वर्ना
मैं ने कोशिश तो बहुत की नज़र आने के लिए
लफ़्ज़ तो लफ़्ज़ यहाँ धूप निकल आती है
तेरी आवाज़ की बारिश में नहाने के लिए
किस तरह तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ का मैं सोचूँ 'ताबिश'
हाथ को काटना पड़ता है छुड़ाने के लिए
ग़ज़ल
कोई मिलता नहीं ये बोझ उठाने के लिए
अब्बास ताबिश