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कोई मय दे या न दे हम रिंद-ए-बे-पर्वा हैं आप | शाही शायरी
koi mai de ya na de hum rind-e-be-parwa hain aap

ग़ज़ल

कोई मय दे या न दे हम रिंद-ए-बे-पर्वा हैं आप

नज़्म तबा-तबाई

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कोई मय दे या न दे हम रिंद-ए-बे-पर्वा हैं आप
साक़िया अपनी बग़ल में शीशा-ए-सहबा हैं आप

ग़ाफ़िल ओ होश्यार वो तिमसाल-ए-यक-आईना हैं
वर्ता-ए-हैरत में नादाँ आप हैं दाना हैं आप

क्यूँ रहे मेरी दुआ मिन्नत-कश-ए-बाल-ए-मलक
नाला-ए-मस्ताना मेरे आसमाँ-पैमा हैं आप

है तअ'ज्जुब ख़िज़्र को और आब-ए-हैवाँ की तलब
और फिर उज़्लत-गुज़ीन-ए-दामन-ए-सहरा हैं आप

मंज़िल-ए-तूल-ए-अमल दरपेश और मोहलत है कम
राह किस से पूछिए हैरत में नक़्श-ए-पा हैं आप

हक़ से तालिब दीद के हों हम बसीर ऐसे नहीं
हम को जो कोतह-नज़र समझें वो ना-बीना हैं आप

गुल हमा-तन-ज़ख़्म हैं फिर भी हमा-तन-गोश हैं
बे-असर कुछ नाला-हा-ए-बुलबुल-ए-शैदा हैं आप

हिर्स से शिकवा करूँ क्या हाथ फैलाने का मैं
कहती है वो अपने हाथों ख़ल्क़ में रुस्वा हैं आप

हम से ऐ अहल-ए-तन'अउम मुँह छुपाना चाहिए
दम भरा करते हैं हम और आइना-सीमा हैं आप