कोई ख़ुशबू न फूल हूँ मैं तो
सर से पा तक बबूल हूँ मैं तो
तेरी दरगाह से गिला कैसा
ख़ुद को भी कब क़ुबूल हूँ मैं तो
चाँदनी मुझ को सज्दे करती है
तेरे क़दमों की धूल हूँ मैं तो
जाने मुझ से बिछड़ गया है कौन
हर जनम में मलूल हूँ मैं तो
तिफ़्ल-ए-दिल की दुआ लिखे जिस को
उस ग़ज़ल का सकूल हूँ मैं तो
क्यूँ दिखाते हो मुझ को तलवारें
लाजवंती का फूल हूँ मैं तो
ज़ख़्म खाता हूँ शुक्र करता हूँ
हाँ ख़िलाफ़त उसूल हूँ मैं तो
'अश्क' इस कारोबारी दुनिया में
आदमी इक फ़ुज़ूल हूँ मैं तो
ग़ज़ल
कोई ख़ुशबू न फूल हूँ मैं तो
परवीन कुमार अश्क