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कोई जादू न फ़साना न फ़ुसूँ है यूँ है | शाही शायरी
koi jadu na fasana na fusun hai yun hai

ग़ज़ल

कोई जादू न फ़साना न फ़ुसूँ है यूँ है

रेहाना रूही

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कोई जादू न फ़साना न फ़ुसूँ है यूँ है
आशिक़ी सिलसिला-ए-कार-ए-जुनूँ है यूँ है

तू नहीं है तो तिरे हिज्र की वहशत ही सही
कि ये वहशत ही मिरे दिल का सुकूँ है यूँ है

कुछ नहीं कहना भी कह देता है सारा अहवाल
ख़ामुशी आईना-ए-हाल-ए-दरूँ है यूँ है

जब से देखा है मोहब्बत को अदावत करते
तब से होंटों पे मिरे हाँ है न हूँ है यूँ है

अब तिरे साथ मिरा जी नहीं लगता साईं
तू ने पूछा था नमी आँख में क्यूँ है यूँ है

आज भी कल की तरह देर से घर आएगा वो
फिर बहाने वही दोहराएगा यूँ है यूँ है