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कोई इश्क़ में मुझ से अफ़्ज़ूँ न निकला | शाही शायरी
koi ishq mein mujhse afzun na nikla

ग़ज़ल

कोई इश्क़ में मुझ से अफ़्ज़ूँ न निकला

हैदर अली आतिश

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कोई इश्क़ में मुझ से अफ़्ज़ूँ न निकला
कभी सामने हो के मजनूँ न निकला

बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का
जो चीरा तो इक क़तरा-ए-ख़ूँ न निकला

बजा कहते आए हैं हेच उस को शाएर
कमर का कोई हम से मज़मूँ न निकला

हुआ कौन सा रोज़-ए-रौशन न काला
कब अफ़्साना-ए-ज़ुल्फ़-ए-शबगूँ न निकला

पहुँचता उसे मिस्रा-ए-ताज़ा-ओ-तर
क़द-ए-यार सा सर्व-ए-मौज़ूँ न निकला

रहा साल-हा-साल जंगल में 'आतिश'
मिरे सामने बेद-ए-मजनूँ न निकला