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कोई इनआम-ए-वफ़ा है कि सिला है क्या है | शाही शायरी
koi inam-e-wafa hai ki sila hai kya hai

ग़ज़ल

कोई इनआम-ए-वफ़ा है कि सिला है क्या है

जावेद नसीमी

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कोई इनआम-ए-वफ़ा है कि सिला है क्या है
उस ने ये दर्द-ए-मोहब्बत जो दिया है क्या है

भूलने को तुझे दिल क्यूँ नहीं राज़ी होता
तेरी यादों में कसक है कि मज़ा है क्या है

किस ने दरवाज़े पे ये रात गए दस्तक दी
याद उस की है कि वो ख़ुद कि हवा है क्या है

तू जो मिल जाता है हर बार बिछड़ कर मुझ को
ये मुक़द्दर है करम है कि दुआ है क्या है

आज क्या फिर किसी अरमान ने दम तोड़ दिया
शोर क्यूँ दिल से ये 'जावेद' उठा है क्या है