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कोई हिज्र है न विसाल है | शाही शायरी
koi hijr hai na visal hai

ग़ज़ल

कोई हिज्र है न विसाल है

नाहीद विर्क

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कोई हिज्र है न विसाल है
सभी ख़्वाहिशों का ये जाल है

मिरी आँख में जो ठहर गया
तिरी फुर्क़तों का मलाल है

मिरा हो के भी न वो हो सका
ये अजीब सूरत-ए-हाल है

तुम्हें सिर्फ़ औरों की फ़िक्र है
कि मेरा भी कोई ख़याल है

मिरे हाल को न बेहाल कर
मिरा तुझ से बस ये सवाल है