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कोई दुआ है या फिर बद-दुआ है मेरे लिए | शाही शायरी
koi dua hai ya phir bad-dua hai mere liye

ग़ज़ल

कोई दुआ है या फिर बद-दुआ है मेरे लिए

ख़ान रिज़वान

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कोई दुआ है या फिर बद-दुआ है मेरे लिए
ये कौन पिछले पहर रो रहा है मेरे लिए

मैं मो'तरिफ़ हूँ बहर-हाल उस की चाहत का
जो तर्क-ए-दुनिया किए जा रहा है मेरे लिए

पनाह अब किसी भी जाँ में ले लिया जाए
कि आसमाँ न ज़मीं कुछ बचा है मेरे लिए

मैं चाह के भी जुदा इस से हो नहीं सकता
अजीब बेबसी की इंतिहा है मेरे लिए

समझ न पाया उसे मैं न वो मुझे 'रिज़वान'
ये कोई वाहिमा या हादिसा है मेरे लिए