कोई दिन का आब-ओ-दाना और है
फिर चमन और आशियाना और है
हाँ दिल-ए-बे-ताब चंदे इंतिज़ार
अम्न-ओ-राहत का ठिकाना और है
शम्अ' फीकी रात कम महफ़िल उदास
अब मुग़न्नी का तराना और है
ऐ जवानी तू कहानी हो गई
हम नहीं वो या ज़माना और है
जिस को जान-ए-ज़िंदगानी कह सकें
वो हयात-ए-जावेदाना और है
जिस को सुन कर ज़ोहरा-ए-संग आब हो
आह वो ग़मगीं फ़साना और है
वा अगर समा-ए-रज़ा हो तो कहूँ
एक पंद-ए-मुश्फ़िक़ाना और है
इत्तिफ़ाक़ी है यहाँ का इर्तिबात
सब हैं बेगाने यगाना और है

ग़ज़ल
कोई दिन का आब-ओ-दाना और है
इस्माइल मेरठी