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कोई दिलकश सा अफ़्साना किसी दिलदार की बातें | शाही शायरी
koi dilkash sa afsana kisi dildar ki baaten

ग़ज़ल

कोई दिलकश सा अफ़्साना किसी दिलदार की बातें

सौरभ शेखर

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कोई दिलकश सा अफ़्साना किसी दिलदार की बातें
फ़सुर्दा रात है छोड़ो लब-ओ-रुख़्सार की बातें

ये मुमकिन है परिंदा क़ैद हो कोई मिरे अंदर
मुझे अच्छी नहीं लगतीं दर-ओ-दीवार की बातें

ज़रा ये भी तो देखो बे-सरों के बीच बैठे हो
कहाँ करने लगे हो तुम अमाँ दस्तार की बातें

तुम्हारी शायरी से बोर मैं अब हो गया 'सौरभ'
वही हालात का रोना वही बेकार की बातें