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कोई दिल-जूई नहीं थी कोई शुनवाई न थी | शाही शायरी
koi dil-jui nahin thi koi shunawai na thi

ग़ज़ल

कोई दिल-जूई नहीं थी कोई शुनवाई न थी

असद जाफ़री

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कोई दिल-जूई नहीं थी कोई शुनवाई न थी
जैसे अहल-ए-शहर से मेरी शनासाई न थी

मुझ को इक चुप-चाप से चेहरे ने ज़ख़्मी कर दिया
मैं ने ऐसी चोट सारी ज़िंदगी खाई न थी

ग़ौर से देखें तो है यादों के रंगों का कमाल
इस क़दर दिलकश कभी तस्वीर-ए-तन्हाई न थी

कर दिया जिस ने मुझे फिर ज़िंदगी से हम-कनार
था मिरा ज़ौक़-ए-यक़ीं तेरी मसीहाई न थी

बाग़बाँ की इक ज़रा सी लग़्ज़िश-ए-तरतीब से
मौसम-ए-गुल था मगर गुलशन में रानाई न थी

जिन से थी इंसाफ़ की उम्मीद अहल-ए-दर्द को
ग़ौर से देखा तो उन आँखों में बीनाई न थी

ना-ख़ुदा मुझ को अपाहिज कर गया वर्ना 'असद'
आसमाँ ऊँचा न था दरिया में गहराई न थी