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कोई दरपेश जब सफ़र आया | शाही शायरी
koi darpesh jab safar aaya

ग़ज़ल

कोई दरपेश जब सफ़र आया

ख़ालिद महमूद अमर

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कोई दरपेश जब सफ़र आया
तेरा चेहरा भी बाम पर आया

लग के चिलमन से झाँकना बाहर
याद वो अध-खुला सा दर आया

मेरे सय्याद को भी हैरत है
क्यूँ न मैं भी लहू में तर आया

देख सारे जहाँ को ठुकरा कर
तेरा दीवाना तेरे घर आया

तेरे दर से शिफ़ा मिले सब को
इक 'उमर' ही शिकस्ता-तर आया