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कोई भी इश्क़ में उतनी ही देर टिकता है | शाही शायरी
koi bhi ishq mein utni hi der tikTa hai

ग़ज़ल

कोई भी इश्क़ में उतनी ही देर टिकता है

मुज़दम ख़ान

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कोई भी इश्क़ में उतनी ही देर टिकता है
कि जैसे सामने सोई के कुछ ग़ुबारे दोस्त

अब अपनी उम्र से बातें बड़ी नहीं करनी
मुझे बुज़ुर्ग समझने लगे हैं सारे दोस्त

मैं इस को फ़ोन करूँ और वो कहे जी कौन
ये दिल की ज़िद है कि फ़ौरी कहूँ तुम्हारे दोस्त

ये आशिक़ी है जो करती है दिल को दरिया भी
फिर इस के बअ'द दिखाएगी दो किनारे दोस्त

मैं शहरी हो के कबूतर उड़ा रहा हूँ क्यूँ
वो बे-समझ है समझती नहीं इशारे दोस्त