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कोई बे-नाम ख़लिश उकसाए | शाही शायरी
koi be-nam KHalish uksae

ग़ज़ल

कोई बे-नाम ख़लिश उकसाए

याक़ूब राही

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कोई बे-नाम ख़लिश उकसाए
क्या ज़रूरी है तिरी याद आए

तेरी आँखों के बुलावे की किरन
क्यूँ मिरी राहगुज़र बन जाए

ज़िंदगी दश्त-ए-सफ़र धूप ही धूप
तेरे बिन कैसे कहाँ के साए