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कोई ऐसा हल निकालें सिलसिला यूँही रहे | शाही शायरी
koi aisa hal nikalen silsila yunhi rahe

ग़ज़ल

कोई ऐसा हल निकालें सिलसिला यूँही रहे

हसन अब्बासी

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कोई ऐसा हल निकालें सिलसिला यूँही रहे
मर भी जाएँ तो हमारा राब्ता यूँही रहे

चलती जाए कश्ती यूँही बादबाँ खोले हुए
ये जज़ीरे ये धुआँ आब-ओ-हवा यूँही रहे

ख़त्म हो जाए दुखों का ये पहाड़ी सिलसिला
और क़ाएम दो दिलों का हौसला यूँही रहे

मेरी आँखों में सदा खिलते रहें अश्कों के फूल
और तिरे मा'सूम होंटों पर दुआ यूँही रहे