कोई आज वज्ह-ए-जुनूँ चाहता हूँ
तुम्हें भूल कर मैं सुकूँ चाहता हूँ
ज़माने की हालत से वाक़िफ़ हूँ फिर भी
न जाने कि मैं तुम को क्यूँ चाहता हूँ
तुम्हारी ख़ुशी पर तुम्हें छोड़ कर अब
तुम्हारी ख़ुशी में सुकूँ चाहता हूँ
ख़फ़ा तुम से हो कर ख़फ़ा तुम को कर के
मज़ाक़-ए-हुनर कुछ फ़ुज़ूँ चाहता हूँ
वरा-ए-मोहब्बत भी इक ज़िंदगी है
तुम्हें फिर भी मैं क्या कहूँ चाहता हूँ
सितम कर के लुत्फ़-ए-करम पूछते हैं
ये तर्ज़-ए-करम अब फ़ुज़ूँ चाहता हूँ
बदलती नहीं फ़ितरत-ए-दर्द 'अनवर'
सुकूँ भी ये तर्ज़-ए-जुनूँ चाहता हूँ
ग़ज़ल
कोई आज वज्ह-ए-जुनूँ चाहता हूँ
इशरत अनवर