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कोहसार के दामन में हवा तेज़ बहुत है | शाही शायरी
kohsar ke daman mein hawa tez bahut hai

ग़ज़ल

कोहसार के दामन में हवा तेज़ बहुत है

मोहम्मद आबिद अली आबिद

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कोहसार के दामन में हवा तेज़ बहुत है
पर ये कि मिरा दोस्त कम-आमेज़ बहुत है

इतना न हुए होते हम अफ़्सुर्दा वतन में
हिजरत में तिरी याद ग़म-अंगेज़ बहुत है

हुस्न आता है अश्या में मौक़ा से महल से
हर मार-ए-सियह-ज़ुल्फ़ दिल-आवेज़ बहुत है

बरसात के मौसम में करे नाला न कोई
बारिश से यहाँ सैल-ए-रवाँ तेज़ बहुत है

जो नूर है चेहरे पे इबादत के एवज़ है
'आबिद' का तो इन अश्या से परहेज़ बहुत है