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किए सज्दे हुए काफ़िर न कुछ दिल में ज़रा समझे | शाही शायरी
kiye sajde hue kafir na kuchh dil mein zara samjhe

ग़ज़ल

किए सज्दे हुए काफ़िर न कुछ दिल में ज़रा समझे

नसीम देहलवी

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किए सज्दे हुए काफ़िर न कुछ दिल में ज़रा समझे
हमें बंदा बनाया ऐ बुतो तुम से ख़ुदा समझे

कलाम-ए-ना-सज़ा भी जो हुआ सरज़द सज़ा समझे
वो गौतम ने कहा बेजा मगर हम सब बजा समझे

न दुश्मन दोस्त हूँ मैं और न बेगाना यगाना हूँ
जो वो समझे तो क्या समझे तो ये समझे तो क्या समझे

कहा मैं ने उठा दो हाथ तुम भी मेरी मुश्किल पर
तो बोले हम से इस्तिदआ दुआ की मुद्दआ' समझे

हबाब-आसा कोई लहज़ा सबात-ए-उम्र-ए-फ़ानी है
जो आक़िल हो वफ़ा-ए-ज़िंदगानी बे-वफ़ा समझे