किए हैं मुझ पे जो एहसाँ जता नहीं सकता
वो शख़्स तो मिरा दिल भी दिखा नहीं सकता
छुपा हुआ हूँ तह-ए-संग एक मुद्दत से
हवा का झोंका मिरी सम्त आ नहीं सकता
परे है आज भी वो सरहद-ए-तसव्वुर से
मैं उस को पूज तो सकता हूँ पा नहीं सकता
दिखा रहा है वही मौज मौज अक्स मुझे
वो तेरा अक्स जिसे मैं बना नहीं सकता
मैं एक नग़्मा-ए-सादा-मिज़ाज हूँ 'आसिफ़'
क़बा-ए-साज़ में ख़ुद को छुपा नहीं सकता
ग़ज़ल
किए हैं मुझ पे जो एहसाँ जता नहीं सकता
एजाज़ अासिफ़