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किया गर्दिशों के हवाले उसे चाक पर रख दिया | शाही शायरी
kiya gardishon ke hawale use chaak par rakh diya

ग़ज़ल

किया गर्दिशों के हवाले उसे चाक पर रख दिया

असलम महमूद

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किया गर्दिशों के हवाले उसे चाक पर रख दिया
कि बनने बिगड़ने का हर फ़ैसला ख़ाक पर रख दिया

मुझे क़स्र-ए-ताबीर की उस ने सब कुंजियाँ सौंप दीं
मगर छीन कर ख़्वाब आँखों से अफ़्लाक पर रख दिया

सिवा राख होने के अब कोई चारा बचा ही नहीं
शरार-ए-हवस किस ने ये मेरे ख़ाशाक पर रख दिया

कोई है जो गिर्दाब-ए-ग़म से बचाए हुए है मुझे
कि इक मेहरबाँ हाथ फिर चश्म-ए-नमनाक पर रख दिया

कोई काम 'असलम' बना ही नहीं वहशतों के बग़ैर
जला कर चराग़-ए-जुनूँ ताक़-ए-इदराक पर रख दिया