किवाड़ बंद भी है और नीम-वा भी है 
वो रूप अनूप ज़रा ख़ुश ज़रा ख़फ़ा भी है 
शरीक-ए-राह-ए-वफ़ा गुल-सरिश्त माह-ब-कफ़ 
क़तील-ए-गर्दिश-ए-दौराँ बरहना-पा भी है 
हक़ीक़तों से फ़सानों को क्या इलाक़ा है 
ख़ुदा नहीं भी है लोगो मगर ख़ुदा भी है 
हुजूम-ए-नग़्मा-ओ-निकहत में यूँ तो होता है 
ख़ता मुआफ़ ख़ता तो नहीं ख़ता भी है 
वही ग़ज़ल की रिवायात-ए-काफ़िरी हैं अभी 
वही हिजाब वही शोख़ी-ए-अदा भी है 
उफ़ुक़ उफ़ुक़ अभी इंसाँ की मंज़िलें हैं 'वक़ार' 
उसी ज़मीं पे मगर राह-ए-इर्तिक़ा भी है
        ग़ज़ल
किवाड़ बंद भी है और नीम-वा भी है
वकील अख़्तर

