EN اردو
कितनी ठंडी थी हवा क़र्या-ए-बर्फ़ानी की | शाही शायरी
kitni ThanDi thi hawa qarya-e-barfani ki

ग़ज़ल

कितनी ठंडी थी हवा क़र्या-ए-बर्फ़ानी की

रासिख़ इरफ़ानी

;

कितनी ठंडी थी हवा क़र्या-ए-बर्फ़ानी की
जम गई दिल में कसक शाम-ए-ज़मिस्तानी की

हादसा कोई नया राह पे गुज़रा होगा
धूल हर चेहरे पे बिखरी है परेशानी की

मैं जहाँ जाऊँ वहीं मौत की तहवील में हूँ
तेग़ इक लटकी है हर साँस पे निगरानी की

मेरे तेवर पे मिरा नाम-ओ-नसब कंदा है
दिल का आईना है तख़्ती मिरी पेशानी की

शाख़-ए-मिज़्गाँ पे लहकते हुए अश्कों के गुलाब
फ़स्ल पनपी है बहुत ख़ित्ता-ए-बारानी की

क्या ख़बर किस का सफ़ीना सर-ए-साहिल पहुँचे
लहर ख़तरे से कहीं ऊँची है तुग़्यानी की

हासिल-ए-किश्त की हो कैसे तवक़्क़ो 'रासिख़'
सूखे नालों में कहीं बूँद नहीं पानी की