कितनी सज़ा मिली है मुझे अर्ज़-ए-हाल पर
पहरे लगे हुए हैं मिरी बोल-चाल पर
कहते हैं लोग जोशिश-ए-फ़स्ल-ए-बहार है
फूलों का जब मिज़ाज न हो ए'तिदाल पर
तू अपनी सिसकियों को दबा अपने अश्क पोंछ
ऐ दोस्त छोड़ दे तू मुझे मेरे हाल पर
फिर आज इस्मतों की जबीं है अरक़ अरक़
तोहमत लगी है फिर किसी मरियम-ख़िसाल पर
महसूस बारहा ये हुआ है कि ज़िंदगी
इक बर्फ़ की डली है कफ़-ए-बर्शगाल पर
ग़ज़ल
कितनी सज़ा मिली है मुझे अर्ज़-ए-हाल पर
जाफ़र बलूच