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कितने नाज़ुक कितने ख़ुश-गुल फूलों से ख़ुश-रंग प्याले | शाही शायरी
kitne nazuk kitne KHush-gul phulon se KHush-rang pyale

ग़ज़ल

कितने नाज़ुक कितने ख़ुश-गुल फूलों से ख़ुश-रंग प्याले

शरीफ़ कुंजाही

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कितने नाज़ुक कितने ख़ुश-गुल फूलों से ख़ुश-रंग प्याले
इक बदमस्त शराबी ने मयख़ाने में टुकड़े कर डाले

मौसमियात के माहिर होने के तो दावेदार सभी हैं
हम समझें जो हब्स घटाए हम मानें जो झक्कड़ टाले

मसनूई नीलूनी फूलों से गुल-दान सजाए जाएँ
और क़रबनीक़ों का लुक़्मा बन जाएँ ख़ुशबुओं वाले

फ़िरऔ'नों के घर ही उन के ज़हरों के तिरयाक़ पले हैं
रातों की आग़ोश ही पाले ऐ दिल सुर्ख़ सपेद उजाले

हम को 'शरीफ़' ये पुख़्ता यक़ीं है आज अगर हैं कल न रहेंगे
राहों में काँटे ही काँटे पाँव में छाले ही छाले