कितने हुए हैं ख़ून यहाँ इक उसूल के
आएँगे अब न शहर-ए-तमन्ना में भूल के
सारी मुसाफ़िरत की थकन दूर हो गई
पेश आए कितने प्यार से काँटे बबूल के
चेहरे हुए जो गर्द तो आईना बन गए
क्या तुर्फ़ा मो'जिज़ात थे सहरा की धूल के
कितना हसीं था जुर्म-ए-ग़म-ए-दिल कि दो-जहाँ
दर पे हैं आज तक मिरे रंग-ए-क़ुबूल के
नाज़ाँ है ज़िंदगी मिरी अब उन की मौत पर
जो लोग रह गए तिरी बाहोँ में झूल के
आने को थी बस आख़िरी हिचकी मरीज़ को
क़ुर्बान जाइए तिरी शान-ए-नुज़ूल के
ऐ 'दिल' ये हाल इश्क़ में होगा ख़बर न थी
पछताए हम तो रोग लगा कर फ़ुज़ूल के
ग़ज़ल
कितने हुए हैं ख़ून यहाँ इक उसूल के
दिल अय्यूबी