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कितने भूले हुए नग़्मात सुनाने आए | शाही शायरी
kitne bhule hue naghmat sunane aae

ग़ज़ल

कितने भूले हुए नग़्मात सुनाने आए

इक़बाल अशहर

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कितने भूले हुए नग़्मात सुनाने आए
फिर तिरे ख़्वाब मुझे मुझ से चुराने आए

फिर धनक-रंग तमन्नाओं ने घेरा मुझ को
फिर तिरे ख़त मुझे दीवाना बनाने आए

फिर तिरी याद में आँखें हुईं शबनम शबनम
फिर वही नींद न आने के ज़माने आए

फिर तिरा ज़िक्र किया बाद-ए-सबा ने मुझ से
फिर मिरे दिल को धड़कने के बहाने आए

फिर मिरे कासा-ए-ख़ाली का मुक़द्दर जागा
फिर मिरे हाथ मोहब्बत के ख़ज़ाने आए

शर्त सैलाब समोने की लगा रक्खी थी
और दो अश्क भी हम से न छुपाने आए