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कितना कमज़ोर है ईमान पता लगता है | शाही शायरी
kitna kamzor hai iman pata lagta hai

ग़ज़ल

कितना कमज़ोर है ईमान पता लगता है

अहया भोजपुरी

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कितना कमज़ोर है ईमान पता लगता है
घर में आया हुआ मेहमान बुरा लगता है

मैं ने होंटों पे तबस्सुम तो सजा रक्खा है
ग़म भुलाने में मगर वक़्त बड़ा लगता है

आप बेकार मुझे शजरा दुखाने आए
आप जो भी हैं वो लहजे से पता लगता है

जब मिलाता हूँ नज़र तो नहीं मिलती नज़रें
जब हटाता हूँ नज़र उस को बुरा लगता है

तितलियाँ बन गईं फिर आज वफ़ादार कई
बाग़ में कोई नया फूल खिला लगता है

यूँ ग़म-ए-हिज्र को दुनिया से छुपाता हूँ मगर
कितना कमज़ोर हूँ आँखों से पता लगता है