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किताब-ए-ज़िंदगी की जदवलों में रंग हम से है | शाही शायरी
kitab-e-zindagi ki jadwalon mein rang humse hai

ग़ज़ल

किताब-ए-ज़िंदगी की जदवलों में रंग हम से है

क़ौसर जायसी

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किताब-ए-ज़िंदगी की जदवलों में रंग हम से है
सहीफ़ा आरज़ू का सर-ब-सर अर्ज़ंग हम से है

दिल-ए-शबनम पे रक्खा है हमीं ने दस्त-ए-ग़म-ख्वारी
दरूँ-बीनी हरीफ़-ए-अफ़सर-ओ-औरंग हम से है

हमारे हौसलों से नूर ले ले गुल्सिताँ जब तक
सहर का क़ाफ़िला पीछे कई फ़रसंग हम से है

उलझता है ब-ज़ाहिर हर चमन से हर ख़राबे से
मगर दर-पर्दा तूफ़ान-ए-बला की जंग हम से है

तसादुम की भी जुरअत टूटने की भी हमें हिम्मत
वक़ार-ए-शीशा हम से है अयार-ए-संग हम से है

ख़िज़ाँ में भी रहा 'कौसर' शगुफ़्ता हौसला अपना
बहार-ए-नग़्मा साज़-ए-दर्द का आहंग हम से है