किसी सूरत तो दिल को शाद करना
हमें दुश्मन समझ कर याद करना
दुआएँ देंगे छुट कर क़ैदी-ए-ज़ुल्फ़
जहाँ तक हो सके आज़ाद करना
कहीं वो आफ़रीं ऐसा पड़े हाथ
न मुझ पर रहम ओ जल्लाद करना
मसीहाई दिखाना बा'द-ए-मुर्दन
जो दिल चाहे तो कुछ इरशाद करना
उड़ा दो ख़ाक मेरी ठोकरों से
अगर मंज़ूर है बरबाद करना
अदब सीखे नहीं हूँ नौ-गिरफ़्तार
बता कर क़ाएदे बेदाद करना
मज़ा था बेबसी की गालियों में
इसी भूले सबक़ को याद करना
बहुत मुश्किल है इन संगीं-दिलों से
ख़याल-ए-ख़ातिर-ए-नाशाद करना
जनाज़ा उठ चुके मेरा तो तुम भी
अदा रस्म-ए-मुबारक-बाद करना
'नसीम'-ए-ख़स्ता-दिल ने जान दे दी
ग़ज़ब लाया तिरा बेदाद करना
ग़ज़ल
किसी सूरत तो दिल को शाद करना
नसीम देहलवी