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किसी शय पर भी इख़्तियार नहीं | शाही शायरी
kisi shai par bhi iKHtiyar nahin

ग़ज़ल

किसी शय पर भी इख़्तियार नहीं

करन सिंह करन

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किसी शय पर भी इख़्तियार नहीं
ज़ीस्त में कुछ भी पाएदार नहीं

ये भी है मो'जिज़ा मोहब्बत का
ग़म कई कोई ग़म-गुसार नहीं

मैं ने दुनिया निसार की जिस पर
मुझ पे उस को ही ए'तिबार नहीं

सारे मतलब के रिश्ते-नाते हैं
कोई रिश्ता भी उस्तुवार नहीं

हर घड़ी बे-क़रार रहता है
दिल को हासिल कभी क़रार नहीं

राहतों का तो ज़िक्र ही क्या है
ग़म भी दुनिया में पाएदार नहीं

लोग दुनिया के ख़ुद-ग़रज़ हैं 'करन'
ये किसी के भी ग़म-गुसार नहीं