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किसी से राज़-ए-मोहब्बत न आश्कार किया | शाही शायरी
kisi se raaz-e-mohabbat na aashkar kiya

ग़ज़ल

किसी से राज़-ए-मोहब्बत न आश्कार किया

कृष्ण बिहारी नूर

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किसी से राज़-ए-मोहब्बत न आश्कार किया
तिरी नज़र के बदलने तक इंतिज़ार किया

न कोई वादा था उन से न कोई पाबंदी
तमाम उम्र मगर उन का इंतिज़ार किया

ठहर के मुझ पे ही अहल-ए-चमन की नज़रों ने
मिरे जुनून से अंदाज़-ए-बहार किया

सहर के डूबते तारो गवाह रहना तुम
कि मैं ने आख़िरी साँसों तक इंतिज़ार किया

जहाँ से तेरी तवज्जोह हुई फ़साने पर
वहीं से डूबती नब्ज़ों ने इख़्तिसार किया

यही नहीं कि हमीं इंतिज़ार करते रहे
कभी कभी तो उन्हों ने भी इंतिज़ार किया