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किसी से राज़-ए-दिल कहना ये ख़ू रुस्वा कराती है | शाही शायरी
kisi se raaz-e-dil kahna ye KHu ruswa karaati hai

ग़ज़ल

किसी से राज़-ए-दिल कहना ये ख़ू रुस्वा कराती है

मोनिका सिंह

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किसी से राज़-ए-दिल कहना ये ख़ू रुस्वा कराती है
तिरी ये बात तन्हाई में पैहम याद आती है

कि हँस के टालते हैं ज़िक्र तेरा कोई गर छोड़े
सबा फिर भी गुज़िश्ता रातों के क़िस्से सुनाती है

न जाने सख़्त क्यूँ है दिल तिरा हैरत सी होती है
तलब पैग़ाम की तेरे मुझे अक्सर रुलाती है

बुलंदी पे अगर वो है तो इतनी बे-रुख़ी क्यूँ कर
मोहब्बत में कशिश ऐसी जो दूरी को मिटाती है

मिरे बरबाद होने का न कर चर्चा जहाँ से तू
उन्हीं क़िस्सों से अक्सर बू तिरे होने की आती है