किसी से अहद-ओ-पैमाँ कर न रहियो
तो उस बस्ती में रहियो पर न रहियो
सफ़र करना है आख़िर दो पलक बीच
सफ़र लम्बा है बसे बिस्तर न रहियो
हर इक हालत के बेरी हैं ये लम्हे
किसी ग़म के भरोसे पर न रहियो
सुहूलत से गुज़र जाओ मिरी जाँ
कहीं जीने की ख़ातिर मर न रहियो
हमारा उम्र-भर का साथ ठेरा
सो मेरे साथ तू दिन-भर न रहियो
बहुत दुश्वार हो जाएगा जीना
यहाँ तो ज़ात के अंदर न रहियो
सवेरे ही से घर आजाइयो आज
है रोज़-ए-वाक़िआ' बाहर न रहियो
कहीं छुप जाओ न ख़ानों में जा कर
शब-ए-फ़ित्ना है अपने घर न रहियो
नज़र पर बार हो जाते हैं मंज़र
जहाँ रहियो वहाँ अक्सर न रहियो
ग़ज़ल
किसी से अहद-ओ-पैमाँ कर न रहियो
जौन एलिया