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किसी ने दिल के ताक़ पर जला के रख दिया हमें | शाही शायरी
kisi ne dil ke taq par jala ke rakh diya hamein

ग़ज़ल

किसी ने दिल के ताक़ पर जला के रख दिया हमें

ऐतबार साजिद

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किसी ने दिल के ताक़ पर जला के रख दिया हमें
मगर हवा-ए-हिज्र ने बुझा के रख दिया हमें

हज़ार हम ने ज़ब्त से लिया था काम क्या करें
किसी के आँसुओं ने फिर रुला के रख दिया हमें

हमारी शोहरतें ख़राब इस तरह भी उस ने कीं
कि अपने आश्नाओं से मिला के रख दिया हमें

हमें इस अंजुमन में जाने उस ने क्यूँ बुला लिया
बुला लिया और इक तरफ़ बिठा के रख दिया हमें

फ़क़त हम एक देखने की चीज़ बन के रह गए
किसी ने ऐसा इश्क़ में बना के रख दिया हमें

हम 'ए'तिबार' उस की हर शिकस्त में शरीक थे
मगर बिसात से अलग उठा के रख दिया हमें