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किसी ने देख लिया था जो साथ चलते हुए | शाही शायरी
kisi ne dekh liya tha jo sath chalte hue

ग़ज़ल

किसी ने देख लिया था जो साथ चलते हुए

शहबाज़ ख़्वाजा

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किसी ने देख लिया था जो साथ चलते हुए
पहुँच गई है कहाँ जाने बात चलते हुए

सफ़र सफ़र है कभी राएगाँ नहीं होता
सर-ए-सहर चली आई है रात चलते हुए

सुना है तुम भी इसी दश्त-ए-ग़म से गुज़रे हो
सो हम ने की है बड़ी एहतियात चलते हुए

हम अपनी उखड़ी हुई साँसों को बहाल करें
कहीं रखे तो सही काएनात चलते हुए

हवा रुकी तो अजब हुस्न था मगर 'शहबाज़'
गिरा गई है कई सूखे पात चलते हुए