किसी ने भी उसे देखा नहीं है
वो इक एहसास है चेहरा नहीं है
मिरी जो साँस आ कर जा रही है
तो क्या ये जान का जाना नहीं है
अजब शहर-ए-अना में जी रहा हूँ
किसी के पास आईना नहीं है
मुझे जो लोग रस्ता दे रहे हैं
उन्हें ख़ुद रास्ता मिलता नहीं है
अकेला सा जो है इक शख़्स बाहर
वो मुझ में है मगर तन्हा नहीं है
मोहब्बत है 'शहाब' इक इस्म-ए-आज़म
दर-ए-दिल ख़ुद ही वा होता नहीं है
ग़ज़ल
किसी ने भी उसे देखा नहीं है
मुस्तफ़ा शहाब