किसी मिस्कीन का घर खुलता है
या कोई ज़ख़्म-ए-नज़र खुलता है
देखना है कि तिलिस्म-ए-हस्ती
किस से खुलता है अगर खुलता है
दाव पर दैर-ओ-हरम दोनों हैं
देखिए कौन सा घर खुलता है
फूल देखा है कि देखा है चमन
हुस्न से हुस्न-ए-नज़र खुलता है
मय-कशों का ये तुलूअ' और ग़ुरूब
मय-कदा शाम-ओ-सहर खुलता है
छोटी पड़ती है अना की चादर
पाँव ढकता हूँ तो सर खुलता है
बंद कर लेता हूँ आँखें 'ताबिश'
बाब-ए-नज़्ज़ारा मगर खुलता है

ग़ज़ल
किसी मिस्कीन का घर खुलता है
ताबिश देहलवी