किसी मरक़द का ही ज़ेवर हो जाएँ
फूल हो जाएँ कि पत्थर हो जाएँ
ख़ुश्कियाँ हम से किनारा कर लें
तुम अगर चाहो समुंदर हो जाएँ
तू ने मुँह फेरा तो हम ऐसे लगे
जिस तरह आदमी बे-घर हो जाएँ
ये सितारे ये समुंदर ये पहाड़
किस तरह लोग बराबर हो जाएँ
अपना हक़ लोग कहाँ छोड़ते हैं
दोस्त बन जाएँ बरादर हो जाएँ
आमद-ए-शब का ये मतलब होगा
'राम' कुछ चेहरे उजागर हो जाएँ

ग़ज़ल
किसी मरक़द का ही ज़ेवर हो जाएँ
राम रियाज़