किसी की याद में आँखों को लाल क्या करना
जिसे बिछड़ना था उस का मलाल क्या करना
हमें तो उस की जुदाई अज़ीज़ रखनी है
ये जाह-ओ-हशमत ओ माल-ओ-मनाल क्या करना
मोहब्बतें तो फ़क़त इंतिहाएँ माँगती हैं
मोहब्बतों में भला ए'तिदाल क्या करना
ये कार-ए-इश्क़ तो बच्चों का खेल ठहरा है
सो कार-ए-इश्क़ में कोई कमाल क्या करना
वो राब्ते जो किए ख़ुद ही कल-अदम हम ने
नए सिरे से फिर उन को बहाल क्या करना
ग़ज़ल
किसी की याद में आँखों को लाल क्या करना
हसन अब्बास रज़ा