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किसी की याद का साया था या कि झोंका था | शाही शायरी
kisi ki yaad ka saya tha ya ki jhonka tha

ग़ज़ल

किसी की याद का साया था या कि झोंका था

असलम हबीब

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किसी की याद का साया था या कि झोंका था
मिरे क़रीब से हो कर कोई तो गुज़रा था

अजब तिलिस्म था उस शहर में भी ऐ लोगो
पलक झपकते ही अपना जो था पराया था

मुझे ख़बर हो जो अपनी तो तुम को लिख भेजूँ
अभी तो ढूँड रहा हूँ वो घर जो मेरा था

किसी ने मुड़ के न देखा किसी ने दाद न दी
लहूलुहान लबों पर मिरे भी नग़्मा था

मैं बच के जाता तो किस सम्त किस जगह कि मुझे
कहीं ज़मीं ने कहीं आसमाँ ने घेरा था

ज़रा पुकार के देखूँ न उन दयारों में
मिरा ख़याल है इक शख़्स मेरा अपना था

महक लहू की थी या तेरे पैरहन की थी
मिरे बदन से हयूला सा एक लिपटा था

उदास घड़ियो ज़रा ये पता तो दे जाओ
कहाँ गया वो ख़ुशी का जो एक लम्हा था