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किसी की याद-ए-रंगीं में है ये दिल बे-क़रार अब तक | शाही शायरी
kisi ki yaad-e-rangin mein hai ye dil be-qarar ab tak

ग़ज़ल

किसी की याद-ए-रंगीं में है ये दिल बे-क़रार अब तक

ज़हीर अहमद ताज

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किसी की याद-ए-रंगीं में है ये दिल बे-क़रार अब तक
रहीन-ए-शौक़ बे-पायाँ है चश्म-ए-इन्तिज़ार अब तक

उन्हें अपना बताता है उन्हें अपना समझता है
फ़रेब-ए-ज़िंदगी है ये दिल-ए-दीवाना-वार अब तक

जिन्हें एहसास भी शायद न हो जज़्बात-ए-उल्फ़त का
ये मेरा सादा दिल उन पर है सौ जाँ से निसार अब तक

नहीं मुमकिन कि सहरा को भुला दूँ लुत्फ़-ए-मंज़िल में
मिरे पाँव के तलवे में चुभी है नोक-ए-ख़ार अब तक

मुझे आदाब-ए-उल्फ़त याद हैं हंगाम-ए-वहशत के
गरेबाँ चाक है दामन है अपना तार तार अब तक

जुदा उन से हुआ हूँ जुर्म-ए-इज़हार-ए-मोहब्बत में
मैं इक हर्फ़-ए-तमन्ना पर हूँ यारो सोगवार अब तक

चमन में सैर-ए-गुल वो और मैं ऐ 'ताज' क्या दिन थे
बहारें आईं आने को न आई वो बहार अब तक