EN اردو
किसी के ज़ख़्म पर अश्कों का फाहा रख दिया जाए | शाही शायरी
kisi ke zaKHm par ashkon ka phaha rakh diya jae

ग़ज़ल

किसी के ज़ख़्म पर अश्कों का फाहा रख दिया जाए

रज़ा मौरान्वी

;

किसी के ज़ख़्म पर अश्कों का फाहा रख दिया जाए
चलो सूरज के सर पर थोड़ा साया रख दिया जाए

मिरे मालिक सर-ए-शाख़-ए-शजर इक फूल की मानिंद
मिरी बे-दाग़ पेशानी पे सज्दा रख दिया जाए

गुनहगारों ने सोचा है मुसलसल नेकियाँ कर के
शब-ए-ज़ुल्मत के सीने पर उजाला रख दिया जाए

तन-ए-बे-सर हूँ मेरे साए में अब कौन बैठेगा
दरख़्तों में मिरे हिस्से का साया रख दिया जाए

बुलाते हैं हमें मेहनत-कशों के हाथ के छाले
चलो मुहताज के मुँह में निवाला रख दिया जाए

दुआएँ माँगते हैं वो हमारे रिज़्क़ की ख़ातिर
फ़क़ीरों के लिए थोड़ा सा आटा रख दिया जाए

मुझे चलने नहीं देंगे ये मेरे पाँव के छाले
मिरे तलवों के नीचे कोई काँटा रख दिया जाए

रिवाजों की वो कसरत है कि दम घुटने लगा अपना
उठा कर अब 'रज़ा' पारीना क़िस्सा रख दिया जाए