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किसी के साथ गया मुद्दतें गुज़ार आया | शाही शायरी
kisi ke sath gaya muddaten guzar aaya

ग़ज़ल

किसी के साथ गया मुद्दतें गुज़ार आया

प्रियदर्शी ठाकुर ‘ख़याल’

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किसी के साथ गया मुद्दतें गुज़ार आया
बड़े दिनों में कहीं जा के फिर क़रार आया

नहीं है ख़्वाब ये सच है न ए'तिबार आया
ये क्या हुआ कि उन्हें और मुझ पे प्यार आया

गया था आँखों में उम्मीद की किरन ले कर
मैं उस के शहर से लौटा तो अश्क-बार आया

वो था जहाज़ का पंछी न मैं जहाज़ कोई
न काम सब्र ही आया न इंतिज़ार आया

फ़राज़-ए-कोह का रस्ता भी था कड़ा लेकिन
'ख़याल' काँप उठी रूह जब उतार आया