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किसी के इश्क़ में ये हाल-ए-ज़ार रहता है | शाही शायरी
kisi ke ishq mein ye haal-e-zar rahta hai

ग़ज़ल

किसी के इश्क़ में ये हाल-ए-ज़ार रहता है

नसीम शाहजहाँपुरी

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किसी के इश्क़ में ये हाल-ए-ज़ार रहता है
सुकून पा के भी दिल बे-क़रार रहता है

वो मय-कदे में बहुत बा-वक़ार रहता है
जो बे-ख़ुदी में भी कुछ होश्यार रहता है

मुझे बहार-ए-गुलिस्ताँ पे नाज़ हो क्यूँकर
मिरी नज़र में मआल-ए-बहार रहता है

दिल-ए-हज़ीं ग़म-ए-दौराँ से आश्ना न सही
तुम्हारे ग़म से मगर हम-कनार रहता है

कोई तो बात है ऐसी कि उन के वादों पर
ख़ुलूस-ए-दिल से मुझे ए'तिबार रहता है

ब-फ़ैज़-ए-जोश-ए-जुनूँ अब मैं उस मक़ाम पे हूँ
जहाँ जुनूँ ही मिरा राज़-दार रहता है

ये जानता हूँ न आए हैं वो न आएँगे
'नसीम' फिर भी मुझे इंतिज़ार रहता है