EN اردو
किसी का तीर किसी की कमाँ हो ठीक नहीं | शाही शायरी
kisi ka tir kisi ki kaman ho Thik nahin

ग़ज़ल

किसी का तीर किसी की कमाँ हो ठीक नहीं

शमीम अब्बास

;

किसी का तीर किसी की कमाँ हो ठीक नहीं
तुम्हारे मुँह में किसी की ज़बाँ हो ठीक नहीं

जो ख़ाक होना मुक़द्दर है अपना रंग है ख़ूब
तमाम उम्र धुआँ ही धुआँ हो ठीक नहीं

तू मिल सका भी तो क्या और न मिल सका भी तू क्या
ख़याल-ए-सूद मलाल-ए-ज़ियाँ हो ठीक नहीं

घनेरी रात घना दश्त घोर तन्हाई
कहीं पे कोई ख़याल-ए-अमाँ हो ठीक नहीं