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किसी का ध्यान मह-ए-नीम-माह में आया | शाही शायरी
kisi ka dhyan mah-e-nim-mah mein aaya

ग़ज़ल

किसी का ध्यान मह-ए-नीम-माह में आया

अहमद जावेद

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किसी का ध्यान मह-ए-नीम-माह में आया
सफ़र की रात थी और ख़्वाब राह में आया

तुलू-ए-साअत-ए-शब-ख़ूँ है और मेरा दिल
किसी सितारा-ए-बद की निगाह में आया

मह ओ सितारा से दिल की तरफ़ चला वो जवाँ
अदू की क़ैद से अपनी सिपाह में आया

जिहाद-ए-ग़म में कोई सुस्त ज़र्ब मेरी तरह
गिरफ़्त-ए-मैसरा-ए-अश्क-ओ-आह में आया

सितारे डूब गए और वो सितारा-गर
थकन से चूर ज़मीं की पनाह में आया

चराग़ है मिरी रातों का एक ख़्वाब-ए-विसाल
जो कोई पल तिरी चश्म-ए-सियाह में आया

दुखी दिलों की सलामी क़ुबूल करते हुए
नज़र झुकाए कोई ख़ानक़ाह में आया