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किसी भी राह पे रुकना न फ़ैसला कर के | शाही शायरी
kisi bhi rah pe rukna na faisla kar ke

ग़ज़ल

किसी भी राह पे रुकना न फ़ैसला कर के

ख़ालिद मलिक साहिल

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किसी भी राह पे रुकना न फ़ैसला कर के
बिछड़ रहे हो मिरी जान हौसला कर के

मैं इंतिज़ार की हालत में रह नहीं सकता
वो इंतिहा भी करे आज इब्तिदा कर के

तिरी जुदाई का मंज़र बयाँ नहीं होगा
मैं अपना साया भी रक्खूँ अगर जुदा कर के

मुझे तो बहर-ए-बला-ख़ेज़ की ज़रूरत थी
सिमट गया हूँ मैं दुनिया को रास्ता कर के

किसी ख़याल का कोई वजूद हो शायद
बदल रहा हूँ मैं ख़्वाबों को तजरबा कर के

कभी न फ़ैसला जल्दी में कीजिए 'साहिल'
बदल भी सकता है काफ़िर वो बद-दुआ कर के