किसी और ने तो बुना नहीं मिरा आसमाँ मिरा आसमाँ
तिरे आसमाँ से जुदा नहीं मिरा आसमाँ मिरा आसमाँ
ये ज़मीन मेरी ज़मीन है ये जहान मेरा जहान है
किसी दूसरे से मिला नहीं मिरा आसमाँ मिरा आसमाँ
कहीं धूप है कहीं चाँदनी कहीं रंग है कहीं रौशनी
कहीं आँसुओं से धुला नहीं मिरा आसमाँ मिरा आसमाँ
उसे छू सकूँ ये जुनून है मेरी रूह को ये सुकून है
यहाँ कब किसी का हुआ नहीं मिरा आसमाँ मिरा आसमाँ
गिरीं बिजलियाँ मेरी राह पर कई आँधियाँ भी चलीं मगर
कभी बादलों सा झुका नहीं मिरा आसमाँ मिरा आसमाँ
ग़ज़ल
किसी और ने तो बुना नहीं मिरा आसमाँ मिरा आसमाँ
आलोक श्रीवास्तव